सी बी आई के बाद, अब आर बी आई की बारी!

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मोदी सरकार देश की स्वायत्त शासी संस्थाओं की स्वतंत्रता खत्म करने का मन बना चुकी है । सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट के हवाले करने के बाद अब देश की वित्त संस्था आर बी आई पर सरकार की नजर गड़ गई है ।


देश में पहली बार आर बी आई एक्ट 1934 के सेक्शन 7 का उपयोग कर अपने आदेश थोप कर मन माने ढ़ंग से देश की बैंको को चलाना चाहते हैं । इस सेक्शन के तहत अब आर बी आई सरकार के किसी भी आदेश को मानने से इंकार नहीं कर सकती । अब सरकार और आर बी आई के बीच तनाव नीतियों को लेकर बढ़ेगा या तो गव॔नर उर्जित पटेल को स्तीफा देना होगा या फिर सरकार उन्हे हटा देगी क्योंकि सेक्शन 7 का इस्तेमाल आर बी आई की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है ।
सरकार ने इसी एक्ट का इस्तेमाल करते हुए अभी कुछ समय पूर्व दो आदेश आर बी आई को दिए थे कि नानबैकिंग फाइनेंशियल कंपनियों और कमजोर बैंको को पूंजी व लघु एवं मध्यम उद्यमों को कज॔ देने को कहा था । सरकार के इस आदेश से डिप्टी गव॔नर विरल आचार्य नाराज हो गए
मोदी सरकार पावर सेक्टर में फंसे क॔जो को लेकर ढील चाहती है जबकि बैंको में फंसे क॔जो की वसूली के लिए आर बी आई कोई ढील देना नहीं चाहती है । सरकार यह भी चाहती है एन पी ए में फंसे लोन की वसूली को लचीला बनाया जाए ।
वित्त मंत्रालय का कहना है कि आर बी आई अधिनियम के तहत प्राप्त अधिकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता के लिए जरूरी है सरकार इसका सम्मान करती हैं सरकार और आर बी आई दोनों की काय॔ प्रणाली लोक हित एवं अथ॔ वयवस्था की जरूरतों के अनुसार होना चाहिए ।
भारतीय रिज॔व बैंक के अनुच्छेद 7 लागू करने का मतलब है कि देश की अथ॔ व्यवस्था की स्थित गंभीर है इसके पूर्व में भी यह लागू नहीं किया गया है । सरकार का यह कदम निराशा जनक है ।
मोदी सरकार की नोटबंदी, जी एस टी जैसी गलत नीतियों के कारण ही भारतीय बैंको की व्यवस्था चरमरा गई है सरकार यदि बैंको से रिकवरी में ढील और मन माफिक ॠण वितरण करानी चाहती है तो बैंक बंदी के कगार पर पहुंच जायेंगे । देश हित में बेहतर होगा आर बी आई को स्वतंत्र रूप से काम करने देना चाहिए ।/

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