कुशवाहा समाज के नायक (पं० जे पी चौधरी कुशवाहा ) का तर्क सामर्थ्य 

लेख

 

पंडित जेपी चौधरी कुशवाहा समाज के उन महान नायको में है जिन्होंने हमारे समाज को स्वाभिमान से जीने और ऐतिहासिक रूप से सक्षम बनाने का निःस्वार्थ कार्य किया और जीवन भर समाज के उत्थान में लगे रहे ,, इन्होंने शुद्रो और वंचितों के हक में भी महातम कार्य किया लेकिन दुर्भाग्य शुद्र इनके एहसानों को भूल बैठे और फर्जी बौधों के बहकावे में एक महामानव के कार्यो को नही समझा।

एक बार जब पंडितो ने जब शास्त्रो के विरुद्ध शुद्रो को मंदिर प्रवेश पर रोक लगाने का प्रयास किया तब शूद्रों के पक्ष में पंडित जेपी चौधरी ने पंडितो को मुह तोड़ जवाब भी दिया और शूद्रों के स्वाभिमान की सुरक्षा भी की /

किन्तु आज कल के ज्यादातर हमारे समाज के बौद्ध बन चुके लोग समाज के इस मसीहा से बहुत जलन रखते है। फिर भी ये मानसिक रोगी बौद्ध और शूद्र पंडित जी के एहसानों से मुक्त नही हो सकते ,,

काशी के पंचानन तर्करत्न भट्टाचार्य त्यक्त महामहोपाध्याय पदवी, ताराचारण भट्टाचार्य वाइस प्रिंसिपल बीकानेर राज्य टिकमणि सस्कृत कालेज, बनारस , योगेश्वर पाठक ज्योतिषाचार्य , वामाचारण  भट्टाचार्य, तर्कतीर्थ, न्यायाचार्य, पूर्ण चंद्राचार्य, व्याकरणाचार्य, आदि 83 मुहघोषित पंडितो ने मिलकर एक व्यवस्था दी थी जिसमे अछुतो का  मंदिर प्रवेश निषिद्ध बतलाया गया था ।

उन फर्जी पंडितो की इस फर्जी व्यवस्था का खण्डन शास्त्राचार्य महारथी पंडित जेपी चौधरी (कुशवाहा) ने  ” अछुतो का मंदिर प्रवेश शास्त्रो के अनुकूल है ” नामक पुस्तक में किया साथ ही उस पुस्तक का खंडन करने वाले को 5000 हजार रुपये का चैलेंज भी दिया था ।

लेकिन इनमें से किसी मुहघोषित पंडित ने उस चैलेंज को स्वीकार करने की हिम्मत नही दिखाई ,,

मेरे इस पोस्ट का अब वास्तविक मंतव्य यही है कि हिंदुओं की मजबूत कड़ी को कमजोर करने का एक महत्व पूर्ण कारक रहे है ऐसे मुहघोषित पंडित और बाबा जो धर्म और शास्त्र को अपने अब्बू की जागीर समझ के उस पर कुंडली मार कर बैठा करते थे ,,  लेकिन इन ठग पंडितो से ज्यादा दोषी वह व्यक्ति है जो इनके फर्जी फरमानों और बकवासी तथ्यों को स्वीकार कर के स्वयं को शुद्र अछूत और त्याज्य वर्ग और समाज मे डाल लिये,

और सबसे बड़ी बात मंदिर और भगवान किसी पांडे पुजारी के बाप की जागीर तो है नही की वह तय करेगा कि कौन मंदिर में भगवान के दर्शन करेगा और कौन नही ,, इस लिए इस तरह के फर्जी पंडो का बहिष्कार करे क्यो की यह हिंदुत्व की सम्लित शक्ति के लिए सबसे बड़ी बाधा है।

साथ ही जो स्वयं को शुद्र समझ कर पंडितो को इस व्यवस्था का ज़िमेदार मानते है वह महामूर्ख पहले अपनी मानसिकता दुरुस्त करे की कोई व्यक्ति और समाज अपने कर्मो से ही बस शुद्र वैश्य क्षत्रिय ब्राह्मण है ,, जिसका निर्धारण कर्म करेगा न कि कोई पांडा पुजारी और बाबा ,, इस लिए किसी ने कहा दिया कौवा कान ले के भाग गया तो कौवे के पीछे चिल्ल पोक मचाने से अच्छा है कि तुम अपने कान की जांच करो,  कोई तुम्हे शुद्र कहे यह मुद्दा नही ,, तुम यह जानने का प्रयास करो कि किसी का बाप तुम्हे जन्मना शुद्र घोषित नही कर सकता अगर तुम्हारे कर्मो में विद्वता या क्षत्रित्व है तो ।

और जो आज कल के कुछ बौद्ध जो मानसिक शुद्र है और वस्तुतः बौद्ध पंडो के मानसिक गुलाम मनोरोगी है तथा पंडित जेपी चौधरी जी से नक भो सिकोड़ते है वह जान ले कि जेपी चौधरी उनके वही बाप है जो पोंगा पंडितो से शास्त्रार्थ में जीत कर यह निष्कर्ष देते थे, मंदिर भगवान या वेद या ज्ञान पर किसी के बाप की बपौती नही वह सबके लिए अनुकूल और समान है।

“व्यक्तित्व वह नही जो रास्ते बदल दे व्यक्तित्व वह है जो रास्ते को अपने अनुकूल कर दे,, ”

नवबौद्ध वही भोगेंडे व्यक्तित्व के लोग है जिनमे रास्ते को अपने अनुकूल बनाने का सामर्थ्य नही था ,,

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