अनुपम खेर एक ऐसे अभिनेता है जो हर रंग में रंग जाते हैं। राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अनुपम खेर एक जाना माना नाम हैं जिन्होंने हॉलीवुड में भी अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है। अपनी इसी नायाब एक्टिंग के दम पर उन्हें स्कूल ऑफ एक्टिंग मतलब अभिनय का स्कूल भी कहा जाता है। रंगमंच हो या टेलीविज़न या फिल्मों का रूपहला परदा इन सभी पर अनुपम ने अभिनय की छाप छोड़ी है। आइए इस महान अभिनेता के जन्मदिन पर एक नज़र डालते हैं उनके जीवन और फ़िल्मी कॅरियर पर।
अनुपम खेर का जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। इनके पिता पुष्कर नाथ खेर एक कश्मीरी पंडित थे और पेशे से वन विभाग में एक क्लर्क थे। इनकी माता का नाम दुलारी था जो घर संभालती थीं। अनुपम खेर एक संयुक्त परिवार मेँ रहते थे जिसमें कुल 11 लोग थे। इनके खुद के एक सगे छोटे भाई राजू खेर हैं जो खुद भी एक एक्टर हैं। इनके पिता का वेतन केवल 90 रुपए था जिससे घर का खर्च मुश्किल ही चल पाता था। इनकी शुरू की पढ़ाई डीएवी स्कूल शिमला से हुई। एक्टिंग का शौक अनुपम खेर को बचपन से ही था और अक्सर वे अपने टीचरों की नक़ल उतारा करते थे। बहुत छोड़ी सी उम्र में इन्होंने स्कूल में एक नाटक के दौरान पृथ्वीराज चौहान की भूमिका निभाई थी। इन्होंने ग्रेजुएशन हिस्ट्री इतिहास में की थी।
स्कूल और कॉलेज के दिनों से ही इन्हें एक्टिंग का शौक लग गया था। अनुपम खेर खुद के बारे में एक किस्सा बताते हुए कहते हैं कि एक बार उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी में एक्टिंग कोर्स का ऐड अखबार में देखा जिसके लिए इन्हें 100 रुपये चाहिए थे जो अपने घर से तो मांग नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने मंदिर से पैसे चुरा लिए और मन ही मन ये बात कही की जब पैसे आ जायेंगे तो वापिस रख दूंगा। पंजाब यूनिवर्सिटी के थिएटर विभाग में नाटक करते हुए उन्हें कई बड़े लोगों से एक्टिंग और कला के बारे में काफी कुछ सीखने को मिला। पंजाब यूनिवर्सिटी में वे बतौर गोल्ड मेडलिस्ट बनकर निकले जिस कारण उन्हें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) में जल्दी एडमिशन मिल गया।
1978 में यहाँ से एक्टिंग सीखने के बाद इन्होंने सोचा कि अब थिएटर करूँगा लेकिन उससे पेट नहीं भरता इसलिए लखनऊ में एक ड्रामा टीचर की नौकरी मिली तो अनुपम खेर ने तुरंत ही हाँ करके नौकरी करनी शुरू कर दी लेकिन एक साल के भीतर ही इनकी एक्टिंग करने की इच्छा फिर से बाहर आने लगी और इन्होंने ये नौकरी छोड़ दी। लेकिन अभिनय के साथ साथ रोजी रोटी के लिए पैसा कमाना भी जरूरी था इसलिए एक दोस्त के यह कहने पर कि एक्टिंग के लिए स्ट्रगल और ड्रामा टीचिंग तो आप मुम्बई जाकर भी कर सकते हैं तो क्यों ना आप मुंबई ही चले जाएं, सुन कर 1981 में अनुपम पहुँच गए मुम्बई। यहाँ सिर पर छत ना होने के कारण इन्हें रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोना पड़ता था। मुम्बई में भी अनुपम के संघर्ष के दिन ख़त्म होते नहीं दिख रहे थे, पैसे खत्म होने लगे तो इन्हें अपने छोटे भाई राजू खेर से पैसे मांगने पड़े जो उस समय किसी फैक्ट्री में काम करते थे।
काफी मेहनत के बाद 1982 में अनुपम को अपने कॅरियर की पहली फिल्म आगमन मिली जो ज्यादा सफल नहीं हो पाई। फिर एक दिन उनकी मुलाकात महेश भट्ट से हुई जिन्होंने अनुपम से कहा कि मैं तुम्हें जानता हूं और तुम्हें अपनी फिल्म सारांश में लेना चाहता हूं। बस फिर क्या था अनुपम खेर ने 1984 में आई इस फ़िल्म में 28 साल की उम्र में भी एक वृद्ध व्यक्ति का किरदार निभाया जिसे दर्शकों ने हाथों हाथ लिया और हर कोई अनुपम की तारीफों के पुल बंधने लगा और सभी ने अनुपम की एक्टिंग का लोहा माना। 10 दिन में ही अनुपम खेर के पास 100 से अधिक फिल्मों के ऑफर थे। कभी वो जज़्बाती रोल में दिखे तो कभी हीरो के दोस्त के रोल में। और जब उन्होंने विलेन का किरदार निभाया तो उससे भी अपनी एक्टिंग की अमिट छाप छोड़ी। हम बात कर रहे है उनके द्वारा निभये गये डॉ. डेंग के किरदार की। अगर बात करें कॉमेडी की तो उसमें तो बाकायदा अनुपम खेर को अपनी बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग्स के लिए कई बार अवार्ड मिले। एक्टिंग के बाद उन्होंने अपना हाथ फिल्म निर्माण में आजमाया और ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ जैसी श्रेष्ठ फिल्म बनाई।
उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों के नाम हैं- डर, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, चाहत, राम लखन, बेटा, कुछ कुछ होता है, मोहब्बतें और अन्य। शाहरुख खान के साथ अनुपम खेर ने सबसे अधिक फिल्में की हैं। उन्होंने फिल्मों का निर्देशन भी किया और ओम जय जगदीश जैसी सफल फिल्म दर्शकों को दी। बात करें उनकी अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों की तो बेंड ईंट लाइक बेकहम, ब्राइड एंड प्रेज्यूडिस, मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइस, कॉशन और इआर जैसी फिल्मों में उन्होंने काम किया है।
समय समय पर अनुपम खेर टीवी पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहे और ‘से ना समथिंग टू अनुपम अंकल’ से उन्होंने टीवी पर अपना पर्दापण किया। इसके बाद उन्होंने सवाल दस करोड़ का, लीड इंडिया और द अनुपम खेर शो जैसे कार्यक्रम दिए।
अनुपम खेर 500 से अधिक फिल्मों में नजर आ चुके हैं। वह हिंदी, इंग्लिश, पंजाबी, तमिल और मलयालम भाषाओं की फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। और तो और अनुपम खेर ने कुछ फिल्मों में गाने भी गाये हैं जैसे कि श्रीमान आशिक़ और खोसला का घोसला।
अनुपम खेर ने कुछ फिल्मों में ऐसे किरदार निभाए हैं जिन्हें देख के लगता है उनके अलावा इन किरदारों को कोई और निभा ही नहीं सकता था और अगर वो ना होते तो ये फिल्में शायद अधूरी ही रह जातीं।
बात करें उनकी निजी ज़िन्दगी की तो 1985 में उन्होंने अपनी दोस्त किरोन (किरण) से शादी की जो दोनों की ही दूसरी शादी रही। किरण खेर को अनुपम पंजाब यूनिवर्सिटी के दिनों से ही जानते थे और किरण खुद भी एक थिएटर कलाकार और एक्ट्रेस हैं। इन दोनों की अपनी कोई संतान नहीं है। किरण खेर की पहली शादी से हुए बेटे सिकंदर खेर ही अब इनके पुत्र हैं।
उपलब्धियां
सिनेमा और कला में अपने योगदान के लिए उन्हें यूएस की टेक्सास गवर्नमेंट होनोरेड गेस्ट अवार्ड से सम्मानित कर चुकी है।
भारत सरकार द्वारा 2004 में पदम्श्री और 2016 में पदम् भूषण मिल चुका है।
1989 में फिल्म डैडी के लिए और 2005 में फिल्म मैंने गाँधी को नहीं मारा के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है।
5 बार कॉमिक परफॉरमेंस के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है।
कराची इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में उन्हें बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिल चुका है।
प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन ने 2010 में उन्हें अपना गुडविल अम्बेस्डर भी घोषित किया था।
इसके अलावा अनुपम खेर भारतीय सेंसर बोर्ड और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
इनका खुद का एक एक्टिंग स्कूल भी है जो एक्टर प्रेपेयर्स के नाम से है जिसकी एक शाखा लंदन में भी है। इनके एक्टिंग स्कूल से कई नामी कलाकार निकले हैं इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है दीपिका पादुकोण।