ऑफर ही ऑफर

लाइफस्टाइल लेख(कहानी)
दीपावली के आने की जितनी खुशी होती है, दीपावली के दिन नजदीक आते-आते उतनी ही जान सिकुड़ने लगती है। घर का सर्वसम्मत और निर्विवाद मुखिया होने के बावजूद मेरी स्थिति अल्पमत सरकार के मुखिया जैसी हो जाती है। यद्यपि समर्थन वापसी की धमकी कोई नहीं देता लेकिन सभी मेरी ओर अजीब सी ललचाई नजरों से देखने लगते हैं। दीपावली को एक सप्ताह ही शेष था। हर दिन की तरह उस दिन भी मैं सुबह की चाय मिलने की प्रतीक्षा में था कि छोटी बेटी चाय के साथ ही दो टोस्ट भी ले आई। मैं चौंका और सूरज की तरफ देखा कि अपनी निर्धारित दिशा से ही निकला है या नहीं। बेटी जो छुट्टी के दिन दस बजे से पहले नहीं उठती है आज छ: बजे चाय के साथ हाजिर है। मैंने कप उठाया और सिप लेने जा ही रहा था कि वह बगल में बैठ गई, बोली- “पापा, कल का पेपर नहीं देखा आपने, डबल कैमरे वाले स्मार्टफोन पर तीन माह का रिचार्ज फ्री और पाँच सौ रुपए छूट का आफर चल रहा है– मैं कब से पुराने वर्सन वाले मोबाइल से काम चला रही हूँ, सेल्फी तक सही नहीं आती उससे– पापा मुझे ये वाला मोबाइल चाहिए इस दीवाली पर, पुराना स्मार्टफोन मम्मी को दे दूँगी, इसी बहाने वह भी स्मार्ट हो जाएंगी”।
मुझे एकाएक समझ में नहीं आया कि बेटी की बुद्धि पर तरस खाऊँ या उसे शाबाशी दूँ कि सुबह से लेकर देर रात तक अथकरूप से व्यस्त रहकर सबका काम समय पर करने वाली माँ को स्मार्ट होने के लिए पुराने फोन की जरूरत है। मैं सोच ही रहा था कि कुलदीपक प्रकट हो गए। बोले- “पापा पिछली दीवाली पर आपने लेपटॉप दिलाया था, सोचता हूँ इस बार बाइक ले लूँ, उस पर फ्री म्यूजिक सिस्टम का ऑफर भी है, घर में म्यूजिक सिस्टम है भी नहीं– कितना अच्छा ऑफर है पापा, इस बार तो मुख्यमंत्री ने सेलरी भी दीपावली से पहले देने की घोषणा कर दी है– तो फिर डन समझूँ मैं”।
मैं कुछ कहता कि बड़ी बेटी भी आ गई। मैंने उसकी ओर कातरता से देखा और उसने मेरी ओर आशा से देखते हुए कहा- “पापा इस बार मेरी कोई डिमांड नहीं है, आप जो दिलाएँगे मैं खुशी-खुशी ले लूँगी- बस इतना ध्यान रखिए कि छुटकी और छोटे से कम न हो”।
“जैसा इन लोगों ने बताया है, तुम भी बता दो” मेरे मुँह से निकला। “कल मंजरी ने मुझे मोटी कह कर छेड़ा था क्या मैं सच मैं मोटी लगती हूँ– पापा इस बार आप मुझे इलिप्टिकल एक्सरसाइज बाइक ही दिलवा दीजिए। मैंने पता किया था उस पर टमी-ट्रिमर का ऑफर भी है, उसे आप ले लेना पापा”। बड़ी बेटी की दरियादिली देख मेरा मन भर आया। तभी किचन से हाथ पोंछते हुए श्रीमती जी का प्रवेश हुआ। उन्हें देखते ही तीनों एक साथ बोल पड़े- “आप भी बता दो मम्मी, इस दीपावली पर क्या चाहिए आपको”। “मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए– मैं तो अपने सीरियल इस पुराने टीवी में ही देख लेती हूँ पर जब ये क्रिकेट मैच देखते हुए नाक-भौं सिकोड़ते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता। बयालीस इंच का एल ई डी टीवी ले लेते हैं इस बार– ऑफर भी अच्छा है, चालीस हजार से ऊपर की खरीद पर एक ग्राम का लक्ष्मी-गणेश वाला सोने का सिक्का फ्री। हमें पूजा के लिए लक्ष्मी-गणेश को अलग से नहीं खरीदना पड़ेगा”। मुझे लगा सीने में कुछ फंस गया है। इतने सारे ऑफर एक-एक करके दिल में उतर गए थे और अब वहाँ उछलकूद मचा रहे थे। मैंने किसी तरह उनको नियंत्रित किया और पूछा- “आपको इन ऑफर्स की जानकारी कैसे मिली”। “क्या पापा आप भी”- छोटी बेटी ने मुझे इस तरह देखा जैसे मैंने कोई बेवकूफी वाली बात कह दी हो। “पापा, अखबार से मिलती है और कहाँ से”- बड़ी बेटी ने बात संभालते हुए कहा- “आजकल तो अखबार में ऑफर की भीड़ में समाचार ढूंढना पड़ते हैं”।
“ओह– अभी तो दीपावली में सात दिन हैं, जैसे-जैसे दिन बीतेंगे तो और अच्छे ऑफर भी आएँगे, हम थोड़ा इंतजार कर लेते हैं”- मैंने अल्पमत सरकार के मुखिया की कुटिलता भरी दूरंदेशी से काम लिया। सब मान गए और फिर उसी दिन दोपहर को मैंने हॉकर को फोन करके अगले एक हफ्ते तक अखबार न देने का निर्देश दे दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *