नागरिकता संशोधन बिल पास

राष्ट्रीय

दिल्ली| नागरिकता संशोधन बिल सोमवार को लोकसभा में पास हो गया। बिल के पक्ष में 311 और विपक्ष में 80 वोट पड़े। इस पर करीब 14 घंटे तक बहस हुई। विपक्षी दलों ने बिल को धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला बताया। गृहमंत्री अमित शाह ने जवाब में कहा कि यह बिल यातनाओं से मुक्ति का दस्तावेज है और भारतीय मुस्लिमों का इससे कोई लेना-देना नहीं है। शाह ने कहा कि यह बिल केवल 3 देशों से प्रताड़ित होकर भारत आए अल्पसंख्यकों के लिए है और इन देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं, क्योंकि वहां का राष्ट्रीय धर्म ही इस्लाम है।

कांग्रेस समेत 11 विपक्षी दलों ने बिल को धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाला बताया। एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बिल की कॉपी भी फाड़ दी। हालांकि, इसे सदन की कार्यवाही से बाहर निकाल दिया गया।

शाह ने कहा, “शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच अंतर को स्पष्ट करना जरूरी है। अपने धर्म, बहू-बेटियों की रक्षा के लिए भारत में शरण मांगने वाला शरणार्थी है, घुसपैठिया नहीं। गैरकानूनी तरीके से देश में घुसने वाला घुसपैठिया है। हम एनआरसी भी लाएंगे, देश में एक भी घुसपैठिया नहीं बचेगा। वोटबैंक की राजनीति करने वालों के मंसूबे हम कभी कामयाब नहीं होने देंगे।”

बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाह की तारीफ की और कहा कि सभी सवालों के जवाब विस्तार से दिए और बिल के सभी पहलुओं को सदन के सामने रखा।

शाह ने कहा- यह बिल किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। बिल में कहीं भी मुस्लिमों का जिक्र नहीं है। भ्रम में आने की जरूरत नहीं है। मनीषजी ने एक शेर पढ़ा था कि लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई। यह बता दूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में ऐसा कभी नहीं होगा। अल्पसंख्यकों में कोई डर की भावना नहीं है। अगर थोड़ा बहुत है भी तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए किसी भी धर्म के नागरिक को डरने की जरूरत नहीं है। हम सभी को सुरक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत के अंदर 1951 में 84% हिंदू था और 2011 में वह 79% हो गया। मुस्लिम 1951 में 9.8% थे और आज 14.23% हैं। हमने किसी के साथ धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया। आगे भी किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा।

 शाह ने कहा- यह बिल आर्टिकल 14, 21, 25 का उल्लंघन नहीं करता है। आर्टिकल 14 में समानता के अधिकार का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि ऐसे कानून, जिनमें समानता का अधिकार न हो, उसे नहीं बनाया जा सकता। लेकिन, नागरिकता संशोधन बिल सभी अल्पसंख्यकों के लिए है। केवल सिख, ईसाई या बौद्ध के लिए यह बिल होता तो आर्टिकल 14 का उल्लंघन होता। हम प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए ऐसा कर रहे हैं और इसलिए यह आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं है।पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का राष्ट्रीय धर्म इस्लाम है। वहां मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं। इसी से वहां पर अल्पसंख्यकों को न्याय मिलने की संभावना क्षीण हो जाती है। 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23% थी और 2011 में 3.7% हो गई। बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22% और 2011 में 7.8% हो गई। ये अल्पसंख्यक कहां गए। ये लोग मार दिए गए, धर्म परिवर्तन हुआ, भगा दिए गए? जो लोग बिल का विरोध कर रहे हैं, वे बताएं कि इन अल्पसंख्यकों का क्या दोष है? हम चाहते हैं कि उनका अस्तित्व बना रहे। वे सम्मान के साथ दुनिया के सामने खड़े हों। पड़ोसी देशों में अगर अल्पसंख्यकों को धर्म के नाम पर प्रताड़ना दी जाती है तो हम मूकदर्शक नहीं बने रहेंगे। भारत उन्हें बचाएगा।

शाह ने कहा कि मनीषजी ने कहा कि सावरकर ने दो देशों का सुझाव दिया। मैं इस विवाद में नहीं जाता। जिन्ना साहब ने जब यह थ्योरी दी थी, तो आपने इसे क्यों स्वीकार किया, रोका क्यों नहीं? महात्मा गांधी ने कहा था कि देश के टुकड़े होंगे तो मेरे शव पर होंगे। कांग्रेस ने धर्म के आधार पर बंटवारे को स्वीकार किया था। यह ऐतिहासिक सत्य है। 1950 में दिल्ली में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ। यह तय हुआ कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों को जाने देंगे। दोनों देशों की सरकारों ने एक-दूसरे को विश्वास दिलाया था कि अल्पसंख्यकों को ध्यान रखा जाएगा, पर समझौता धरा का धरा रह गया। अगर कांग्रेस धार्मिक आधार पर विभाजन को स्वीकार न करती तो हमें यह बिल लाने की जरूरत ही न पड़ती।
शाह ने कहा कि अभी केवल तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह बिल लाया जा रहा है। पहले भी अलग-अलग समय पर ऐसा किया गया। लाल बहादुर शास्त्री और भंडारनायके के बीच 1964 में जो समझौता हुआ, श्रीलंका के लोगों को नागरिकता दी गई। तब भारत ने बांग्लादेश और पाकिस्तान और अफगानिस्तान वालों को नहीं दी थी। जब भी नागरिकता के बारे में कोई कदम उठाया गया, तब तयशुदा समस्या को सुलझाने के लिए उठाया गया। शाह ने कहा कि गोगोईजी बता रहे थे कि नॉर्थ ईस्ट में बिल को लेकर चिंता है। मैं बता दूं कि सभी राज्यों ने बिल का समर्थन किया है। नॉर्थ ईस्ट में भ्रांति फैलाई जा रही है। पूरा अरुणाचल, मिजोरम, नगालैंड इनर लाइन परमिट से सुरक्षित है। मणिपुर आज सुरक्षित नहीं है, हम बिल तभी नोटिफाई करेंगे जब यह इनर लाइन परमिट से सुरक्षित हो जाएगा। मेघालय करीब-करीब पूरा इसके बाहर है। असम समझौता 1985 में हुआ। असम के लोगों की कमेटी क्लॉज 6 के तहत कमेटी बनाई है, जो असम के लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक रचना की चिंता करेगी।”

 गृहमंत्री ने कहा कि अल्पसंख्यक शरणार्थियों में आशंका फैलाई जा रही है। अगर उनके पास कोई दस्तावेज है, कोई दस्तावेज नहीं है, कोई दस्तावेज पूरा है, या पूरा नहीं है.. कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें नागरिकता मिलेगी। राशन कार्ड नहीं है तो भी उन्हें नागरिकता दी जाएगी। अगर कोई आवेदक नौकरी, घर जैसे लाभ उठा रहा है तो वो उससे छीने नहीं जाएंगे। कोई किसी कार्रवाई की आशंका अपने मन में लिए है तो बता दूं कि नागरिकता मिलते ही यह आशंका दूर हो जाएगी।
शाह ने कहा कि सदन में बंकिम चंद्र चटर्जी, रवींद्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद की बात कही गई। क्या इन लोगों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी, जहां दुर्गापूजा के लिए भी कोर्ट में जाना पड़े। (इस बयान पर तृणमूल सांसद हंगामा करने लगे) ये गुस्सा क्यों हो गए, मैंने तो तृणमूल को कुछ कहा ही नहीं। एनआरसी और नागरिकता बिल को जाल बताया जा रहा है। ऐसा नहीं है। ये उन लोगों को जाल जरूर लग सकता है, जो वोटबैंक के लिए घुसपैठियों को शरण देना चाहते हैं। हम उन्हें सफल नहीं होने देंगे।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा- नागरिकता संशोधन बिल शरणार्थियों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला है और यह संविधान, संविधान की भावना और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की विचारधारा के खिलाफ है। सरकार एक ऐसा उपाय लेकर आई है, जिसका राजनीतिक मतलब सभी जानते हैं। धर्मनिरपेक्षता संविधान में निहित है। इसका विशेषतौर पर जिक्र किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के समझौते के अनुसार भी सरकार शरणार्थियों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। हम पर भारत के बंटवारे का आरोप लगाया जा रहा है, लेकिन वह सारकर थे, जिन्होंने 1935 में हिंदू महासभा की बैठक के दौरान बंटवारे का सुझाव दिया था।

एआईएमआईएम सांसद ओवैसी ने कहा, “असम के एनआरसी की नजर से इस बिल को देखा जाना चाहिए। असम एनआरसी में 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए। बिल के हिसाब से बंगाल में जितने हिंदुओं के खिलाफ केस चल रहे हैं, सब बंद हो जाएंगे। मुसलमानों के खिलाफ केस चलेगा। क्या यह भेदभाव नहीं है? सरकार ने मुस्लिमों को बगैर मल्लाह की कश्ती में सवार कर दिया है, लेकिन हम दरिया पार करके दिखाएंगे। भारत का एक तिहाई हिस्सा चीन के कब्जे में है, लेकिन हमारी सरकार उनसे कुछ नहीं कहती। केंद्र सरकार चीन से इतना क्यों डरती है। चीन ने पूरा अक्साईचिन हथिया रखा है। क्या गारंटी है कि जो हिंदू पाकिस्तान से आएंगे, उनकी नीयत सही होगी। पाकिस्तान को भारत के मुस्लिमों और अपने यहां के हिंदुओं से मतलब नहीं है। उसे तो अपना काम करना है और वह यह हर हाल में करेगा। यह बिल देश में एक और बंटवारा करवाने जा रहा है। यह बिल हिटलर के कानून से भी बदतर है और इसलिए मैं यह बिल फाड़ रहा हूं।’

Q&A में समझें नागरिकता संशोधन विधेयक…

1. नागरिकता कानून कब आया, वर्तमान में इसका स्वरूप कैसा है?

जवाब: यह कानून 1955 में आया। इसके तहत किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है।

2. क्या इस कानून के तहत अवैध तरीके से दाखिल हुए लोगों को भी नागरिकता मिल सकती है?

जवाब: भारत में अवैध तरीके से दाखिल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है। उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान हैं।

3. सरकार क्या संशोधन करने जा रही है?

जवाब: संशोधित विधेयक में पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक शरणार्थियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को नागरिकता मिलने का समय घटाकर 11 साल से 6 साल किया गया है। मुस्लिमों और अन्य देशों के नागरिकों के लिए यह अवधि 11 साल ही रहेगी।

4. विपक्ष क्यों विरोध कर रहा?

जवाब: इसके 2 बड़े कारण हैं। पहला- इस बिल को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया जा रहा है क्योंकि पड़ोसी देशों से आए 6 धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने में ढील दी जा रही है लेकिन मुस्लिमों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। दूसरा- पूर्वोत्तरी राज्यों का विरोध है कि यदि नागरिकता बिल संसद में पास होता है बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिंदुओं को नागरिकता देने से यहां के मूल निवासियों के अधिकार खत्म होंगे। इससे राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत पर संकट आ जाएगा।

6. इस बिल के पक्ष में सरकार के क्या तर्क हैं?

जवाब: सरकार का कहना है कि पड़ोसी देशों में बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर उत्पीड़न झेलना पड़ा है और इस डर के कारण कई अल्पसंख्यकों ने भारत में शरण लेकर रखी है। इन्हें नागरिकता देकर जरूरी सुविधाएं दी जानी चाहिए।

7. बिना दस्तावेजों के रहने वाले गैर-मुस्लिमों को भी क्या नागरिकता मिल सकती है?

जवाब: जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया है या उनके दस्तावेजों की वैधता समाप्त हो गई है, उन्हें भी भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की सुविधा रहेगी। बिना वैध दस्तावेजों के पाए गए मुस्लिमों को जेल का निर्वासित किए जाने का प्रावधान ही रहेगा।

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