मैं तुम्हें पूजता ही रहा आज तक

कविता लेख(कहानी)

जो भी उलझन है मेरी
वो सुलझा दो तुम
मैं अकेले उलझता
रहा आज तक..।।
थक गया हूँ अकेले
सफ़र लंबा है
मैं अकेला चला हूँ
सदा आज तक..।।
अब मिले साथ तेरा
सम्भल जाऊं मैं
लड़खड़ाता रहा हूँ
अभी आज तक..।।
आसरा अब भी
छोड़ा नहीं आस की
राह तकता रहा हूँ
तेरा आज तक..।।
मेरी उम्मीद को
सार्थक कर दो तुम
मैं तुम्हें पूजता ही
रहा आज तक..।।
मैं तुम्हें पूजता ही
रहा आज तक..।।

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