चुनावी मुद्दों का मुद्दा (व्यंग्य)
1 min readलेख(कहानी)
यह काफी स्पष्ट हो गया है कि बेरोजगारी, चुनावों में बड़ा मुद्दा बनने लायक नहीं है। इस विषय पर पहले ही स्वादिष्ट ढंग से प्रेरणा दी गई थी। कई महीने पहले ही समझाया गया था कि पकौड़ों का निर्माण भी एक लाभप्रद व्यवसाय हो सकता है। हमारे कई विपक्षी नेताओं को यह विचार पसंद नहीं आया वह अलग बात है कि उनमें से कइयों ने यह काम शुरू कर लिया हो और अच्छा मुनाफा कमा रहे हों। खैर अभी पिछले महीनों में नए बने मुख्यमंत्री ने गाइड किया है कि बैंड बजाना भी अच्छा व्यवसाय हो सकता है। बैंड बजाने के कितने अर्थ लिए जा सकते हैं और बैंड कई तरीके से बजाया जा सकता है। इस विचार को भी मज़ाक में लिया गया जोकि गलत बात है। अब चौकीदार होने की बात को भी संजीदगी से नहीं लेना चाहते। गौर से समझो तो सरकारी चौकीदार की नौकरी किसी तरह मिल जाए इसके लिए बहुत पढ़े-लिखे लोग भी कोशिश करते है। समाज के नायक, उच्च पद पर आसीन महानुभावों की बातों का सही अर्थ निकालना ज़रूरी है। उनका मतलब होता है कि हम कोई भी व्यवसाय करें वह ईमानदारी भरी मेहनत से करें। उनका विचार विदेशी जीवन से प्रेरित है जहां किसी भी काम को छोटा नहीं माना जाता। सोच तो ऊंची है।
उन्होंने किसी को झूठ बोलने को नही कहा। बेईमानी करने के लिए नहीं कहा। किसी को भी हिंसा या नफरत का शिकार बनाने के लिए नहीं कहा। उन्होंने जवानों की शहादत पर भी राजनीति करके इसे मुद्दा बनाने के लिए नहीं कहा। उन्होंने जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा तक नहीं किया उन्हें पता यह बेकार की बातें विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के महान चुनाव में कहाँ मुद्दा हो सकती हैं। यह भी कोई मुद्दा हुआ कि हमारे शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। उन्हें पता है कि हमारे देश की कई मुसीबतें तो धार्मिक अनुष्ठान करवाकर, शहरों के नाम बदलकर, इतिहास संशोधित कर अनेक चैनलों पर काला जादू चलाकर, धार्मिक सीरियल दिखाकर ही खत्म हो जाती हैं। कई दिक्कतें भजन कर, जुलूस निकाल, सेमिनार व प्रतियोगिता करवाकर, होली खेलकर ही उजड़ जाएंगी। दुनिया की छटी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बनने से चुनाव के कई मुद्दे ख़त्म हो गए हैं।
महिलाएं बहुत सुरक्षा सक्षम हो चुकी हैं। सब समझ गए कि काला धन कैसे बाहर आता है। चुनाव के मौसम में पिछले चुनाव के दौरान किए गए वायदों को मुद्दा बनाना गलत है ऐसी राजनीति नहीं करनी चाहिए। नेताओं को पता होता है कि राजनीति हर किसी के बस की नहीं होती अगर ऐसा होता तो वे राजनीति जैसे शुद्ध व्यवसाय में आने को कहते। उन्हें पता है कि जातिवाद, संप्रदायवाद जैसी चीज़ें कभी मुद्दा नहीं बन सकते और चुनाव हमेशा विकास के मुद्दे पर लड़ा जाता है। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे चुनावी मुद्दे पर राजनीतिक दंगल करवाना गलत है। पत्रकार व विरोधी तो इस पर भी राजनीति करवा रहे हैं। किसानों की बचीखुची दुविधाएँ और शिक्षा का व्यापारीकरण भी छोटी छोटी बाते हैं। सरकार जानती है कि विपक्ष का कर्तव्य छिद्रान्वेषण है इस पर तनिक भी ध्यान नहीं देना चाहिए। चुनाव जीतना ज़रूरी है भैया, अरबों खरबों का मामला है इसलिए चुनाव में उन्हीं मुद्दों को मुद्दा बनाया जाना चाहिए जो चुनाव जितवा दें और सरकार दोबारा बनवा दें। हमारे यहाँ बड़े लोगों की शिक्षा को आत्मसात न करने की परम्परा किसी भी मुद्दे को मुद्दा नहीं बनने देती।