भारत माता की जय (कहानी)
1 min readलेख(कहानी)
जब मंत्री जी के बंगले पर पहुंचा तो दरवाजे पे खड़े कुत्तों को देख थोड़ा सकपका सा गया। मैंने गार्ड को कहा की मंत्रीजी का इंटरव्यू लेने आये हैं। गार्ड ने अंदर से सुनिश्चित किया की हमारा अपॉइंटमेंट है या नहीं। उन कुत्तों को उनके संभालने वाले लड़कों ने पीछे किया और हमें अंदर जाने की अनुमति दी गयी।
आंगन में बड़ा-सा बाग था जिसमे तरह तरह के फूल लहलहा रहे थे। उन्हीं के बीच था मंत्रीजी का आलीशान बंगला। हमने देखा तो मन में सवाल उठा कि जीवन भर की कमाई से भी इसका एक चौथाई मकान खड़ा कर पाएंगे। इसी में याद आया की मां के इलाज़ के लिए पैसे भी भिजवाने हैं।
हमें बड़े से हॉल में, एक कप चाय के साथ बिठाया गया। उस कप को देख के लगता था कि उसकी कीमत एक मज़दूर की दिन भर की दिहाड़ी से ज़्यादा होगी। मंत्री जी आये पर वो अपने फ़ोन पर व्यस्त थे। मुझे लगा की वो मुझे बताना चाह रहे हैं कि उनका वक़्त मेरे वक़्त से ज़्यादा कीमती है।
कुछ मिनटों के इंतेज़ार के बाद मंत्रीजी मेरे सामने वाली सीट पर बैठे। उनका पहला सवाल था कि मैं कौन-से चैनल या अखबार से हूँ। मैंने उन्हें बताया कि मैं फलां अखबार से हूँ तो उनका मुँह चढ़ गया। उन्होंने अपने पीए को मेरे सामने ही फटकार लगायी कि मेरे जैसे छोटे पत्रकार को अनुमति क्यों दी गयी। मेरा वहाँ होना जैसे ना के बराबर था।
मुझे वहाँ आए घंटाभर होने के बाद मुझे पहला सवाल पूछने का मौका मिला। मैंने मंत्री जी से पूछा कि ये जो लड़का चाय लेकर आया था, इसकी शिक्षा का क्या इंतेज़ाम किया गया है। मंत्री जी हंसते हुए बोले, “तुम पत्रकार बस तिल का पहाड़ बनाना जानते हो। हमने उसे रोजगार दिया है और आप शिक्षा पे अटके हो।” एक 16-17 साल के लड़के को, शिक्षा और रोजगार में चुनना पड़े और हमारे मंत्री इसे देख न पाएं तो आगे क्या ही कहें।
अचानक से मंत्री जी का फोन बजा। उठाते ही उन्होंने कहा, “भारत माता की जय”। वो उसे उठाकर बात करते हुए निकल गए। पीछेसे उनके पीए ने बताया कि मंत्रीजी को एक मीटिंग में जाना पड़ गया है। हमने अपनी कलम कॉपी समेटी और शुक्रिया करके वहाँ से निकल गए।
धूप तेज़ थी तो सोचा ऑटो कर लें। हाथ दिखाने ही वाले थे कि माँ का फ़ोन आ गया पैसों के बारे में पूछने को। हम बस स्टाप पे जाके खड़े हो गए। बाजू में लिखा था “भारत माता की जय”।