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अनुवांशिक एवं डाउन सिंड्रोम पर संगोष्ठी

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ऑब्स एंड गाइनी सोसाइटी द्वारा अनुवांशिक रोगों के निदान एवं परामर्श से संबंधित जानकारी साझा की गई। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ.नीलम मिश्रा द्वारा दीप प्रज्वलित कर एवं संस्था का प्रतीक  रुप में माला पहनाया गया। उसके बाद आए हुए डॉक्टरों ने अनुवांशिक रोगों पर अपने-अपने विचार विमर्श दिए और बचाव के बारे में भी बताया।

अनुवांशिक एवं डाउन सिंड्रोम पर वक्तव्य देते विशेषज्ञ।

संवाददाता:हरि ओम द्विवेदी;-कानपुर ऑब्स एंड गाइनी सोसाइटी के तत्वाधान में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें अनुवांशिक परामर्श एवं डाउन सिंड्रोम और इसके खतरे पर विशेषज्ञों ने परामर्श दिया। कार्यक्रम का शुभारंभ कानपुर ऑब्स एंड गाइनी सोसाइटी की अध्यक्षा डां.नीलम मिश्रा ने दीप प्रचलित कर किया। कार्यक्रम में आए सभी डॉक्टरों का डॉक्टर नीलम मिश्रा नेे पौधे भेट कर आभार व्यक्त किया। वही डॉ.नीलम ने बताया मेडिकल जेनेटिक्स एक आगामी चिकित्सा विशेषता है जो अनुवांशिक रोगों की निदान और परामर्श से संबंधित है,ये उन परिवारों की भावी पीढ़ी में अनुवांशिक रोगों के रोकथाम के लिए उस विकार के जन्म पूर्व निदान (एमनियोसेटेसिस और टीवीएस द्वारा) किया जा सकता है। विभिन्न परिस्थितियों में जेनेटिक्स परामर्श की आवश्यकता होती है। जैसे गर्भावस्था में शिशु के अल्ट्रासाउंड में विकृति गर्भाधान के बाद गर्भवती महिला कोई भी दवा ले रही है,जैसे मिर्गी,हृदय की समस्या आदि के लिए गर्भावस्था के दौरान मधुमेह गर्भवती महिला की उम्र 35 वर्ष अधिक है एवं परिवार में एक या एक से अधिक बार गर्भाशय में उनकी मृत्यु हो जाना या प्रसव के बाद मृत पैदा होना या बार बार गर्भपात होना। परिवार में कोई बच्चा वयस्क में मंदबुद्धि या जन्मजात विकृति होना जैसे रीढ़ की हड्डी की असमानता ह्रदय दोष या हाथ पैर आंख हाथों में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी आदि या पति पत्नी किसी भी अनुवांशिक विकार के वाहक हैं। वहीं संगोष्ठी में आए डॉक्टर पूनम ने बताया कि इस संसार में पैदा होने वाले हर 800 1000 बच्चों में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम का होता है। डाउन सिंड्रोम एक जैविक जेनेटिक बीमारी है जो गुणसूत्रों की खराबी से होती हैं इन बच्चों में 21 नंबर के गुणसूत्र की 2 के बजाय 3 कॉपियां होती है। डाउन सिंड्रोम के बच्चे मंदबुद्धि व मानसिक रूप से विकलांग होते हैं और उन्हें जीवन भर सहायता एवं निगरानी की आवश्यकता होती है डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है किसी भी मां को डाउन सिंड्रोम बच्चा हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान डबल ट्रिपल या क्वाडुपल टेस्ट नामक मां के खून से जांच के द्वारा पता लगाया जा सकता है कि गर्भावस्था शिशु में डाउन सिंड्रोम का खतरा अधिक तो नहीं है। या जांच गर्भावस्था के 11 से 19 हफ्ते में की जाती है। जांच के साथ अल्ट्रासाउंड के द्वारा गर्भ के अंगों की बनावट की जांच करके भी गर्भ में डाउन सिंड्रोम होने की संभावना का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि खून और या अल्ट्रासाउंड जांच में खतरा आता है तो अल्ट्रासाउंड में देखते हुए गर्भ से पानी निकाल कर (अमीनियोसेटेसिस) उस में गुणसूत्रों की जांच की जाती है। इस जांच में डाउन सिंड्रोम के अलावा अन्य गुणसूत्रों की खराबी का भी पता चल सकता है।डॉक्टर राशि ने बताया कि यदि अमीनियोसेटेसिस कि रिपोर्ट में गर्भ में डाउन सिंड्रोम या अन्य गुणसूत्रों की खराबी आती है, क्य डाउन सिंड्रोम और मंदबुद्धि का कोई इलाज नहीं होता माता-पिता डाउन सिंड्रोम के गर्भ का गर्भपात करवा सकते हैं। या विकल्प गर्भावस्था के 5 महीने तक सरकार द्वारा कानूनी रूप में अनुमोदित है। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ किरन सिन्हा आई.वी.एफ. विशेषज्ञ डॉ.रश्मि मिश्रा ने किया। कार्यशाला में डॉ.मीरा अग्निहोत्री,डॉ.किरण पांडे,डॉ.विनीता अवस्थी,डॉक्टर रेशमा निगम, एवं अन्य डॉक्टर उपस्थित रहे।

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