श्री विजय कौशल:हनुमानजी के अलावा कोई नही लांग पाता समुद्र
1 min readजामवंत द्वारा हनुमान जी को सीता जी की खोज खबर एवं माता सीता को प्रभु राम का संदेश एवं लंका में पहुंचकर विभीषण जी मिलाप बजरंगबली की बल और बुद्धि का प्रयोग एवं अंगद को लंकेश के दरबार में भेजकर युद्ध को टालने का प्रयास और अंततः युद्ध माता सीता को पुनाराम से मिलाने का पूरा प्रसंग व्यास गद्दी पर विराजमान श्रद्धा श्री कौशल जी महाराज के मुखारविंद उसे श्रवण कर भक्त मंत्रमुग्ध हो गए।
संवाददाता:हरि ओम द्विवेदी; कानपुर:-आज की कथा का प्रारंभ हनुमानजी को जामवंत की इस सलाह से हुआ कि तुम लंका जाकर सीता जी की खोज खबर लाओ बस, आगे भगवान जैसा निर्देश देंगे वैसा किया जाएगा। संत महाराज जी ने कहा कि हनुमानजी की जगह कोई और होता तो सागर ही न लांघ पाता, जो आप हनुमान जी के बुद्धि, विवेक के बारे में गाते हैं वही इस प्रसंग में प्रत्यक्ष हो जाता है कभी अति लघु कभी अति विशाल, कभी प्रहार सभी उपायों का प्रयोग करके जब हनुमानजी लंका पहुंचते हैं तो संदेह में पड़ जाते हैं क्यूंकि बाहर से सभी घर मंदिर जैसे ही दिख रहे थे.
अब एक तो लंका के रहने वाले निशाचर और उसमें ये मंदिर, किन्तु विभीषण का घर मिलते ही हनुमान जी का सब काम बन जाता है |एक भरोसो एक बल, एक आस बिश्वास हनुमानजी का पूरा जीवन और कर्म इसका प्रमाण है |विभीषण से सीता जी का पता ले अशोक वन पहुंच कर श्री राम जी का सन्देश कहते हैं, पर सीता जी उन्हें पहचानने और संदेश वाहक मानने से ही इंकार कर देती हैं. हनुमानजी जब करुणानिधान शब्द की उपमा से राम जी को विभूषित करते हैं तब जाकर सीता जी राम जी का संदेश सुनती भी हैं और अपना संदेश देती भी हैं।हनुमानजी अपनी नीति निपुणता का परिचय देते हुए रावण के दरबार को भी सीख दे देते हैं और रावण की प्रजा को भी लंका का हाल सुनकर राम जी युद्ध करने से पहले एक बार समझौते का प्रयास करने के लिए अंगद को भेजने का निर्णय लेते हैं किंतु रावण अंगद का भी उपहास करता है और इस प्रकार सीता जी को पाने के लिए केवल युद्ध ही विकल्प बचता है।अतिथि माननीय सतीश महाना जी, कैबिनेट मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, अतिथियों में विधायक अभिजीत सांगा जी, दिल्ली से आए – श्री अशोक जाह्नवी जी, श्रीमती संगीता सोनकर पत्नी सांसद श्री विनोद सोनकर, व्यवसायी विकास पूंडीर व अंजली पूंडीर, राहुल जी विभाग संगठन मंत्री ABVP आदि रहे।कथा के आज के यजमान श्रीमान रमेश यादव जी और उनकी पत्नी श्रीमती रानी यादव जी थे।कथा का संचालन डॉ सुनील सिंह ने किया।