भक्तों ने ही घरों से भगवान को किया बेघर धर्म के ठेकेदार नदारद,दिवाली के बाद नदी तालाबों के किनारे भगवान,भगवान भरोसे।
संवाददाता:हरिओम द्विवेदी कानपुर-हिंदू धर्म की मानता है कि दिवाली पे माटी से निर्मित देवी देवताओं का पूजन और माता लक्ष्मी की आराधना से मिलता है जीवन में धन धान,वही उसका विपरीत नजारा दीपावली के बाद पवित्र नदियों तालाबों और नहर के किनारे भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्तियों की अधिक संख्या में एकत्रित हो जाती है उन्हें छोड़ने वाले कोई और नहीं उन्हीं को पूजने वाले भक्त ही करते हैं अनादर साल गुजर जाने के बाद उन्हें छोड़ जाते हैं नदी तालाबों और नहर के किनारे क्या यही सनातन धर्म की परंपरा है और क्या ये उचित है या अनुचित है।
मां गंगा के तट पर मां लक्ष्मी की मूर्ति पड़ी लावारिसimg hodकभी नदी तालाबों और पवित्र नदियों में विसर्जन करने कि परंपरा को माननीय न्यायालय ने लगा दी थी रोक उसके बाद भक्तों का ज्ञान बढ़ा और नदी तालाब नहर के किनारे या पीपल के वृक्ष के नीचे बड़ी संख्या में घरों से लाकर मूर्तियां लावारिस की तरीके से छोड़ कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
धार्मिक दृष्टि से नदी तालाब में पवित्र मूर्तियों का विसर्जन किया जाता रहा है लेकिन आज की स्थिति परिस्थितियों के अनुसार यह करना अनुचित है जिसका दुष्परिणाम मानव जाति को भोगना पड़ा जिस पर माननीय न्यायालय ने आपत्ति जताकर इस नियम प्रणाली को रोक दिया, और इसके विकल्प में मूर्तियों को भूमि विसर्जन के लिए चुना गया लेकिन आज भी रूढ़िवादी उसी पुरानी नीति को अपना रहे हैं और कुछ ज्ञानी इन से दो कदम बढ़ कर आगे हैं वे जैसे तैसे अपने घरों से पूजित प्राण प्रतिष्ठा वाली लक्ष्मी गणेश की प्रतिमाओं को नदी तालाब नहर के किनारे और वृक्षों के नीचे छोड़कर अपना कर्तव्य का निर्वाह करते हुए अपना पल्ला झाड़ रहे हैं और आस्था का खिलवाड़ कर रहे हैं।
लेकिन इससे भी दुखद पीड़ा देने वाली घटना उन धर्म के ठेकेदारों की ओर से झलक रही है जिन्हें हिंदू धर्म की चिंता सताती रहती है लेकिन उन्हें अपने क्षेत्र में नदी तालाब नहर के किनारे भगवान की मूर्तियों की ना कदरी आस्था पर चोट और हिंदू देवी देवताओं का अपमान नजर नहीं आ रहा सालों साल इसी तरहां हजारों की तादाद में लोग अपने घरों से भगवान गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों को नदी नहर तालाबों के आसपास खुले आसमान के नीचे बेसहारा छोड़ कर चले जाते हैं लेकिन ना तो उनकी आस्था उन्हें पुकारती है और ना ही उनको अपनी आस्था पर चोट नजर आती है और ना किसी संस्था को मूर्तियों का अपमान नजर आता है जहां खुले में पालतू जानवर उनके इर्द-गिर्द मल मूत्र त्यागते हैं। उन ठेकेदारों से कौन करेगा इस धर्म और आस्था पर चोट पे सवाल आखिर धर्म के ठेकेदार इस अधर्मी नियम कि क्यों कर रहे हैं अनदेखी।