पांच दिन बाद भी तय नहीं हो पाया राजस्थान भाजपा का अध्यक्ष।
केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा है कि मेरे राजस्थान का सीएम बनने की खबरें पूरी तरह फर्जी हैं। मैं न तो प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में हंू और न ही सीएम की। जो लोग ऐसी खबरें चला रहे हैं वे मेरे हितेषी नहीं हो सकते हैं। मैं भाजपा का साधारण कार्यकर्ता हंू और यही बने रहना चाहता हंू। असल में बीस अप्रैल को बीकानेर में मेघवाल से जब सीएम और प्रदेश अध्यक्ष बनने की खबरों के बारे में मीडिया ने सवाल किए तो मेघवाल ने कुछ इसी अंदाज में जवाब दिए। असल में मेघवाल भी यह अच्छी तरह समझते हैं कि राजस्थान में सीएम वसुंधरा राजे का फिलहाल कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में यदि सीएम को लेकर उनका नाम चलता है तो उन्हें राजनीतिक नुकसान होगा। मेघवाल को यह भी पता है कि उनके प्रदेशाध्यक्ष बनने में भी किसने आपत्ति दर्ज करवाई है। ऐसे में मेघवाल वर्तमान हालातों में कोई जोखिम नहीं लेना चाहते।
तय नहीं हुआ प्रदेशाध्यक्षः
अशोक परनामी ने गत 16 अप्रैल को ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन पांच दिन गुजर जाने के बाद भी नए अध्यक्ष की घोषणा नहीं हो सकी है। माना जा रहा है कि अध्यक्ष के नाम को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा हाईकमान के बीच सहमति नहीं बन रही है। पिछले दो दिनों में गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम प्रदेशाध्यक्ष के लिए तेजी से उभरा है, लेकिन वहीं ये सवाल भी उठा है कि क्या राजस्थान में सीएम और प्रदेशाध्यक्ष एक ही जाति के होंगे? राजनीति में जब जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर निर्णय होते हैं तो फिर सीएम और प्रदेश अध्यक्ष एक ही जाति का कैसे बनाए जा सकते हैं। यह बात अलग है कि यदि गजेन्द्र सिंह शेखावत को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाता है तो फिर सीएम वसुंधरा राजे के विकल्प की तलाश भी शुरू हो जाएगी। इस बीच राजपूत समाज में भी हलचल हो गई है। चाहे आनंदपाल का मामला हो या फिर पदमावती फिल्म का इन मामलों को लेकर राजपूत समाज में सक्रिय प्रतिनिधियों का कहना है कि अब शेखावत को आगे कर राजपूत समाज की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की जा रही हैं। असल में दोनों ही मामलों में सरकार की भूमिका को लेकर नाराजगी थी। जब तक सरकार के नेतृत्व में बदलाव नहीं होगा, तब तक राजपूत समाज संतुष्ट नहीं हो सकता। हालांकि समाज के प्रतिनिधियों को शेखावत के अध्यक्ष बनने पर कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन इस बात की नाराजगी तो है ही पद्मावती और आनंदपाल के मामले के समय शेखावत भी चुप्पी साधे रहे।