केन्द्र सरकार ने सौन्दर्यीकरण पर खर्च किए हैं 13 करोड़ रूपये।
राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और दिनेश मेहता ने 14 जनवरी को एक मामले में कहा कि पब्लिक प्रोपर्टी के ट्रस्टी अफसर भी होते हैं। अफसरों का यह दायित्व है कि वे पब्लिक प्रोपर्टी का दुरूपयोग न होने दें। लेकिन इसी दिन भाजपा के कब्जे वाली अजमेर नगर निगम के अफसरों ने ऐतिहासिक सुभाष उद्यान मात्र 82 लाख रूपये सालाना ठेके पर दे दिया। कोई 40 बीघा भूमि पर फैला अजमेर का सुभाष बाग शहर के बीचों बीच बना हुआ है। इस उद्यान का ऐतिहासिक महत्व देखते हुए ही नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने अपनी हृदय और अमृत योजना में हाल ही में 13 करोड़ रूपये खर्च किए हैं। इस राशि से उद्यान में तीन तरह के ट्रेक तथा सौन्दर्यीकरण का काम किया गया है। हरियाली के लिए पेड़ों पर करोड़ों रूपया खर्च किया गया है। 40 बीघा भूमि होने से उद्यान की विशालता का अंदाजा लगाया जा सकता है। ठेकेदार को इतना बड़ा उद्यान देने से पहले उद्यान में तीन-तीन पार्किंग स्टैंड, टिकिट खिड़की, बच्चों के लिए ट्रेन, वाटर बोट आदि की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है। इतना ही नहीं रेस्टारेन्ट का स्थान भी निर्धारित किया गया है। ठेकेदार की कमाई पहले दिन से शुरू हो जाएगी, क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा सौन्दर्यीकरण इस उद्यान में प्रवेश शुल्क 5 रूपये प्रति व्यक्ति कर दिया गया है। हालांकि अभी भी प्रतिदिन हजारों पर्यटक उद्यान में घूमने आते हैं, लेकिन एक माह बाद होने वाले ख्वाजा साहब के उर्स में तो कई हजार जायरीन आएंगे। चूंकि यह उद्यान शहर के बीचों बीच है, इसलिए शहरवासी भी बड़ी संख्या में यहां घूमने आते हैं। सुभाष उद्यान कोई साधारण बाग बगीचा नहीं है। यहां बड़ी-बड़ी आम सभाएं होती रही हैं और शहर के प्राकृतिक सौन्दर्य में इस उद्यान की खास भूमिका का है। ऐतिहासिक आनासागर झील और उस पर बनी बारादरी से सटा होने के कारण इस उद्यान का खास महत्व है। लेकिन अब इस सार्वजनिक का उपयोग ठेकेदार अपनी मर्जी से करेगा। चूंकि ठेकेदार नगर निगम को 82 लाख रूपये सालाना देगा, इसलिए 40 बीघा वाले उद्यान में कहां क्या बेचा जाए तथा किससे कैसे वसूली हो, यह सब ठेकेदार ही तय करेगा। पापड़ से लेकर आइसक्रीम तक खोमचे भी इस उद्यान में लगाए जा सकते हैं। निगम के अधिकारी अभी शर्तों का हवाला दें, लेकिन सब जानते हैं कि पब्लिक प्रोपर्टी का उपयोग ठेकेदार कैसे करते हैं ? असल में जब पब्लिक प्रोपर्टी का उपयोग कमाई के लिए होने लगता है तब सरकारी साधनों का ऐसा ही दुरूपयोग होता है। निगम के अफसर इस बात से खुश हो सकते हैं कि बिना कुछ किए 82 लाख रूपये की कमाई हो रही है, लेकिन इस कमाल के लिए 40 बीघा भूमि वाले उद्यान को गिरवी रख दिया गया है। अब यह भी देखना होगा कि उद्यान के रख-रखाव का क्या होता है ? क्या जिस हालत में उद्यान दिया गया है, वह सुरक्षित रह पाएगा ? सवाल यह भी है कि क्या अफसरों का नजरीया कमाई का है ? जबकि लोकतंत्र में सरकार जनता के लिए बनती है।
पार्षद खामोश:
अजमेर नगर निगम में 60 निर्वाचित पार्षद है, जो शहर की 6 लाख आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन 40 बीघा भूमि वाले सुभाष उद्यान को 82 लाख रूपये ठेके पर देने पर खामोश है। इसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के जन प्रतिनिधि शामिल हैं। 11 दिसम्बर 2018 से पहले तक जब प्रदेश में भाजपा का शासन था तब कांग्रेस के नेता सुभाष उद्यान को ठेके पर देने और प्रवेश शुल्क लगाने का विरोध कर रहे थे, लेकिन सत्ता में आते ही कांग्रेस के नेता चुप हो गए हैं।
सफाई ठेकेदार ने लिया है सुभाष उद्यान का ठेका:
नगर निगम के एक सफाई ठेकेदार ने ही सुभाष उद्यान का ठेका लिया है। असल में कचरा उठाने वाले इस ठेकेदार को निगम के अफसरों और पार्षदों को हैंडल करने का तरीका आता है। सुभाष उद्यान के ठेके में तो मौज ही मौज है, ऐसी मौज-मस्ती का लाभ आखिर पार्षद और अफसर भी उठाएंगे। किसी को भी पब्लिक प्रोपर्टी की चिंता नहीं है। राज कांग्रेस का हो या भाजपा का, आखिर चलती तो ठेकेदारों की ही है।