चुनौतियों के बीच एक और चुनौती

लेख लेख(कहानी)
आज कोविड -19 अर्थात कोरोना महामारी के चंगुल में फँसी सारी दुनिया बस एक कवायद में जुटी है कि किस तरह इस महामारी से निजात पाया जाए। इसी परिपेक्ष में पूरी दुनिया की राजनैतिक पार्टियों का आंकलन जनतंत्र ने अपने-अपने स्तर से शुरू कर दिया है कि कौन सी राजनैतिक पार्टी किस स्तर पर जनहित की कार्ययोजना में लगा हुआ है। लगभग दुनिया के हर देश जहाँ इस महामारी के कारण सामाजिक, राजनैतिक, व आर्थिक रूप से प्रभावित हो चुके हैं ऐसे में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की चुनौती हर देश की सरकारों के सम्मुख सवाल बनकर खड़ी है।
जहाँ एक तरफ कोरोना महामारी की जानलेवा चुनौती बाहर मुँह खोले खड़ी है वहीं दूसरी ओर एक और चुनौती देश के सम्मुख यह है कि वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को मजबूती कैसे दिया जाए? वहीं फिर एक और चुनौती सम्पूर्ण जनता के सम्मुख कि निजी अर्थतंत्र को आखिर कैसे बनाया जाए? अगली कड़ी में एक और चुनौती मध्यम व मजदूर वर्ग के लोगों के सम्मुख कि कैसे जिन्दा रहा जाए? मन में कोरोना का खौफ और सामने भूखे पेट की जलन!
इतनी सारी चुनौतियां एक साथ आ टपकी कि पूरा जन-जीवन ही अस्त-व्यस्त हो गया ऐसे में एक और चुनौती आत्मनिर्भरता की! उच्चवर्गीय जनसमूह तो लगभग पहले से ही आत्मनिर्भर है वहीं मध्यमवर्गीय परिवार भी जैसे-तैसे आत्मनिर्भर होने की कोशिश कर सकता है पर क्या यह निम्नवर्गीय व मजदूर श्रेणी के लोगों द्वारा संभव है जो एक वक्त की रोटी भी काम करके ही पाता है तो ऐसे में जब यह निम्नवर्ग बेरोजगारी से बेहाल है तो वह आत्मनिर्भर कैसे होगा? यह निम्नवर्गीय पहले ही लॉकडाउन का दंश खुद की रोजी-रोटी का आधार गंवा कर झेल चुका है जिसके पास दो वक्त का खाना भी न हो साहेब वह खुद को आत्मनिर्भर क्या बनाएगा?

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