पुरवानचल के बाहुबली की वापसी ही सपा को होगा लाभ।

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लगभग 14,साल के वनवास के बाद बीजेपी यूपी की सत्ता प्राप्त की तो उसके ताकतवर नेताओं में से एक बाहुबली रमाकांत यादव 14 साल बाद सपा में वापसी की तैयारी कर रहे है। रमाकांत की वापसी से सपा को बड़ा फायदा होता दिख रहा है। रमाकांत यादव की आजमगढ़ में ही नहीं बल्कि आस पास के जिलों के यादवों में भी अच्छी पकड़ है। रमाकांत के सपा के टिकट पर मैदान में उतरने की स्थित में उनके समर्थक उसी तरह एकजुट होकर सपा के पक्ष में मतदान करेंगे जैसे उन्होंने वर्ष 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में किया था।

सपा के बाहुबलियों की होगी युक्ति ।

बता दें कि रमाकांत यादव ने कांग्रेस जे से राजनीतिक कैरियर शुरू किया और पहली बार वर्ष 1984 में फूलपुर से इसी पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए थे। वर्ष 1993 में सपा के गठन के बाद रमाकांत यादव मुलायम के साथ चले गए। मुलायम सरकार को बचाने के लिए गेस्ट हाउस कांड को अंजाम देने के बाद रमाकांत यादव और उनके बाहुबली भाई मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी हो गए।

लेकिन अमर सिंह और बलराम यादव से छत्तीस के आंकड़े के चलते रमाकांत यादव और उनके भाई को वर्ष 2004 में सपा छोड़ने पड़ी। उस समय गेस्ट हाउस कांड को भूलकर मायावती ने रमाकांत यादव को न केवल अपना लिया बल्कि वर्ष 2004 में रमाकांत यादव को आजमगढ़ संसदीय सीट से प्रत्याशी भी बना दिया। रमाकांत यादव चुनाव भी जीत गए लेकिन मायावती से उनकी नहीं बनी तो वर्ष 2008 में बसपा बाय कहकर भाजपा में शामिल हो गए। वर्ष 2008 का उपचुनाव भी वे भाजपा के टिकट पर लड़े लेकिन बसपा के अकबर अहमद डंपी से हार गए।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को रमाकांत के आने का फायदा मिला और आजादी के बाद पहली बार बीजेपी आजमगढ़ सीट जीतने में सफल रही। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें स्टार प्रचारक के रूप में उतारकर फायदा उठाने का प्रयास किया लेकिन सपा की लहर में रमाकांत का जादू नहीं चला। वर्ष 2014 में माना जा रहा था कि मोदी लहर में रमाकांत फिर आजमगढ़ सीट भाजपा की झोली में डालेंगे लेकिन आजमगढ़ सीट से सपा ने मुलायम सिंह को उतार दिया और रमाकांत को हार का सामना करना पड़ा। यह अलग बात है कि रमाकांत ने मुलायम को कड़ी टक्कर दी थी। लगातार दो चुनावों में रमाकांत यादव का जादू फीका पड़ा तो भाजपा में उनकी पूछ कम हो गयी। भाजपा शासित राज्यों में रमाकांत यादव को पहले की अपेक्षा कम ठेके मिलने लगे। फिर रमाकांत यादव ने खीझ मिटाने के लिए वर्ष 2016 में गृहमंत्री राजनाथ सिंह सहित सवर्ण नेताओं पर हमला बोलना शुरू कर दिया।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पांच टिकट न मिलने के बाद रमाकांत के तेवर और तल्ख हो गये और उन्होंने बीजेपी में लाकर राजनीतिक कैरियर बचाने वाले सीएम योगी पर हमला बोलना शुरू कर दिया। अब सपा और बसपा के बीच गठबंधन की संभावना को देखने के बाद रमाकांत को अपना कैरियर खतरे में दिख रहा है वहीं सपा रमाकांत को अपने लिए बड़ी चुनौती मान रही है। यूं भी कह सकते है कि दोनों ही एक दूसरे की जरूरत महसूस कर रहे है। रमाकांत यादव सपा में जाने के लिए बेचैन है तो सपा नेता बीजेपी को हराने के लिए रमाकांत को गले लगाने के लिए बेचैन है। रमाकांत यादव और अखिलेश यादव की दो मीटिंग भी हो चुकी है। माना जा रहा है कि रमाकांत यादव एक सप्ताह के भीतर साइकिल पर सवार हो जाएगें।

राजनीति के जानकारों की मानें तो रमाकांत के बीजेपी छोड़ने का मिलाजुला असर होगा। रमाकांत की वजह से बीजेपी से नाराज सवर्ण चुनाव में बीजेपी की साथ खड़े हो जाएगे लेकिन रमाकांत का वोट बैंक उससे दूर हो जाएगा। इसका पार्टी को नुकसान हो। वहीं सपा को इसका पूरा फायदा मिलेगा। कारण कि आजमगढ़ के अलावा जौनपुर, मऊ, अंबेडकरनगर सहित आसपास के जिले के यादवों में रमाकांत की गहरी पैठ है। रमाकांत के सपा में आने के बाद वे खुलकर गठबंधन के साथ जाएगे। ऐसी स्थित में बीजेपी के लिए वर्ष 2019 की राह आसान नहीं होगी।

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