हे प्राण प्रिये,मेरी अर्धांगिनी 

कविता लेख लेख(कहानी)
हे प्राण प्रिये, मेरी अर्धांगिनी
आकांक्षाओं के अनंत आकाश में ना उड़ो
बस प्रेम की पकडंडियों पर तुम चलो
अभिलाषाएं क्या किसी की पूरी हुई हैं
संतोष से ही जीवन स्वर्ग बना है
हे प्राण प्रिये, मेरी अर्धांगिनी
तुम्हारे अप्रतिम सौंदर्य को देखकर
मन विचलित हो जाता है
सौंदर्य केवल आनंद नहीं प्रेम की समाधि है
सच्चे प्रेमियों को ऐसा अनुभव होता है
हे प्राण प्रिये, मेरी अर्धांगिनी
तुम ही घर को घर बनाती हो
पुरे घर को तन्मयता से सहेजती हो
त्याग ही कलयुग की तपस्या है
मेरे लिए सदा तू वंदनीय है
हे प्राण प्रिये, मेरी अर्धांगिनी
मुहब्बत के सिवा कुछ नहीं चाहत है
तुम्हारे प्रेम से ही मैं चहकता हूं
बाहर की दुनिया में इसीलिए महकता हूं
बस अनंत प्रेम का जादू है
हे प्राण प्रिये, मेरी अर्धांगिनी
मेरे हृदय में तुम बसी सचित्र हो
इस बात में कुछ भी नहीं विचित्र है
धरती की बेचैनी को आसमां समझता है
तुम भी अलौकिक प्रेम को दिल से पढ़ती हो

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