नववर्ष संकल्प अर्थात न्यू ईयर रिजोल्यूशन एक ऐसा चोंचला है, जिसे लेकर दुनियाभर के लोग इन दिनों परेशान हैं। नववर्ष संकल्प अमूमन व्यक्ति का स्वयं ही स्वयं के बारे में पेश किया घोषणापत्र होता है, जो राजनीतिक दलों के मेनिफेस्टों की तरह अधिकांश मामलों में गलत साबित होता है।जिस तरह चुनाव जीतने के बाद राजनेता एक ही साल में चुनाव में किया खर्च बराबर कर लेना चाहता है, वैसे ही बुरी आदतें छोड़ने या अच्छी आदते चाहने के सपने देखने वाला व्यक्ति एक ही साल में संकल्प लेकर खुद का कायाकल्प कर देना चाहता है। लेकिन संकल्प चुनना आसान काम नहीं है। जैसे तैसे चुन लिया तो निभाना उतना ही मुश्किल होता है, जितना चुनाव के वक्त राजनेताओं के लिए अपने हलफनामे में सही जानकारी देना।
नव वर्ष संकल्प कई तरह के होते हैं। दैनिक,साप्ताहिक,मासिक और वार्षिक। नाम से स्पष्ट है कि दैनिक संकल्प रात से सुबह होते होते टूट जाते हैं। साप्ताहिक रिजोल्यूशन चार-छह दिन तक घिसट घिसट कर निभते हैं। फिर शनिवार-रविवार आते-आते कुछ खास मित्रों की संगत में अगले साल के लिए टाल दिए जाते हैं। एक महीने तक संकल्प निभाने वाले लोग कम हैं,लेकिन वो कुछ उम्मीद जगाते हैं। जैसे, शराब पीने वाला व्यक्ति एक महीने तक बिना पिए घर पहुंचे तो घरवालों को उम्मीद जगती है कि शायद इसने शराब छोड़ दी। लेकिन, एक महीने बाद बंदा खूब शराब पीकर नाली में लोटने के बाद घर पहुंचता है तो भरोसा भी टूटता है और बर्तन भी। वार्षिक संकल्प को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि जिसमें इसे निभाने का मानसिक साहस है, उसे नए साल की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता ही नहीं है।
फिलहाल मौसम संकल्प लेने का है। संभव है कि आप प्रण में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर चिंतित हों। आप भयभीत हों कि आपका लिया संकल्प कहीं फिर झूठा ना साबित हो। हर साल की तरह इस बार भी आप संकल्प पर चंद दिन नहीं टिक पाए तो? तो जनाब, चिंता करने की जरुरत नहीं है। आखिर आप झूठ बोलेंगे भी तो खुद से ही ना। लोग घर-द्वार, मंदिर-मस्जिद, संसद-सड़क, रैली-गोष्ठी कहीं भी खुलकर झूठ बोल रहे हैं और आप खुद से भी झूठ नहीं बोल सकते। हद है! अभिव्यक्ति की आज़ादी का फिर क्या मतलब है?
यदि आपने अभी तक संकल्प नहीं लिया है तो अवश्य ले लें। संकल्प पुराने साल के आखिरी दिनों से लेकर नए साल के शुरुआती दो चार दिन तक लिया जा सकता है। मेरे एक मित्र इसलिए संकल्प नहीं लेना चाहते क्योंकि संकल्प टूटना अपना अपमान लगता है। उन्हें ये भी डर है कि संकल्प नहीं निभा तो पत्नी बहुत गरियाएगी। मैंने कहा, “रिजोल्यूशन लेने के मामले में व्यक्ति को सरकारों की तरह शर्म निरपेक्ष होना चाहिए। फिर, क्या पता कभी संकल्प को खुद इतनी शर्म आ जाए कि वो पूरा होने की ठान ले।” उन्होंने हाँ में सिर हिलाया और मासूमियत से बोले-” किसी वेबसाइट या मार्केट में संकल्प की सेल नहीं लगती क्या। आजकल हर चीज़ सेल से खरीदने की आदत हो गई है। जब तक डिस्काउंट नहीं मिलता,खरीदने का मन नहीं करता।” मैंने कहा-‘लेकिन संकल्प कोई खरीदने की चीज़ थोड़ी है। संकल्प है,जो लेना होगा।’ उन्होंने दो टूक कहा-“देखो भइया, लेने वाली कोई चीज़ अपन फ्री में नहीं लेते। खुद्दारी भी कोई चीज़ होती है। लेकिन, डिस्काउंट अपना हक है। संकल्प भी अगर लेना है तो अपन बिना डिस्काउंट के नहीं लेंगे।” मैंने कहा-“तो ऐसा कीजिए,जिस रिजोल्यूशन को आप जिंदगी भर निभाना चाहते हैं, उसे सिर्फ एक दिन के लिए ही लें। हजारों गुना डिस्काउंट।” वे हँसे और बोले-“ये ठीक है। न्यू ईयर है। कोई सस्ता मद्दा संकल्प ले ही लेता हूं।”