देश में आजादी और असली लोकतंत्र की स्थापना अमर्यादित व सिद्धांतविहीन रूप से थोपी गई “राजनीति” के विनाश बिना संभव नहीं ….
नई विकसित लोकतान्त्रिक व्यवस्था कि दिशा में बढ़ता पहला कदम
आजादी के 70 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद अधिकांश लोगो का यही मानना है कि देश में आज की हर समस्या के पीछे मूल कारण राजनीति है | इससे पीछा छुड़ाये बिना देश में खुशहाली व उन्नति नहीं आ सकती है |
विज्ञान के तर्कों व विश्लेषण की पद्धति से देखा जाये तो आजादी के बाद “राजनीति” की उत्पति ही अमर्यादित व सिद्धांतविहीन है | आज लोकतंत्र को ख़त्म करने की कगार पर व व्यवस्था के छिनभिन करने में इसका ही प्रमुख योगदान है |
अंग्रेजो से आजादी के बाद देश में राजतन्त्र यानी राजा का शासन नहीं आया | धार्मिकता के आधार पर शासन व आगे राजतन्त्र में परिवारवाद के जहर को अतीत के अंधकार में छोड़ लोकतंत्र लागु किया गया अर्थार्त आम जनता का शासन |
इस लोकतंत्र के अंदर किन लोगो ने राजनीति को अंदर घुसाया वो स्पष्ट नहीं है | महात्मा गाँधी को आधार माने तो वो आजादी के बाद कांग्रेस को ख़त्म करना चाहते थे क्योकि उसका कार्य व समय दोनों पुरे हो चुके थे |
“राजनीति” यानि राज करने की नीति यह तो राजतन्त्र में एक राजा अच्छे से व जनहित में राज करे उसके लिए बनाये नियमो का मूल आधार था | इसका श्रेय प्रमुख रूप से चाणक्य को जाता है | आज भी चाणक्य के उपदेशो को लेकर कई निर्णयों को उचित ठहराने की कोशिश होती है | चाणक्य ने ये सिद्धांत लिखे तब परिवारवाद और जिसकी लाठी उसकी भैंस व राजा ही भगवान होता है वो जो कहे वो सही …. दिन दो दिन व रात तो रात …का समय वाला दौर था |
इन सभी के मध्य सोचने व समझने वाली बात यह है कि “राजतन्त्र” लागु नहीं हुआ तो राजनीति को जबरन किसने थोप दिया | लोकतंत्र में लोकनीति बनानी चाहिए थी व राजनैतिक पार्टियों की जगह लोकतान्त्रिक संगठन बनाने चाहिए | आज के दौर में कई संगठन अपने नाम के पीछे सेना लगा राजा-महाराजा के समय की सोच के अनुरूप कार्य करते है |
इस राजनीति के मूल में होने के कारण आप देख सकते है कि देश का अधिकांश राजनैतिक पार्टियों में एक व्यक्ति या उसके परिवार का ही दबदबा है | कोई भी व्यक्ति सत्ता में आये वो राजा कि तरह सभी संस्थानों, पार्टी के कार्यकर्ताओ, कर्मचारियों के तंत्र व आम जनता को अपने निचे या अधीन रखना चाहता है |
इस देश में कई महान लोग हुये व नेता भी बने वो देश को विकास के मार्ग पर ले गये | इनके कारण आज कई क्षेत्र में हमें उन्नति कि झलक देखने को मिलती है परन्तु समकालीन दूसरे देशो कि तुलना में बहुत कम नजर आती है | आज भी कई अच्छे लोग इस क्षेत्र से जुड़े है परन्तु परिणाम सुखद नहीं आ रहे है और आ सकते है | इसका प्रमुख कारण है राजनीति के तौर-तरीको वाली क़ानूनी पटरियों पर कितनी भी अच्छी व सुन्दर ट्रेन दौड़ा ले वो उसी स्थान पर ले जाती है जहा पटरिया जाती है |
आप पिछले पांच से दस वर्षो का राष्ट्रीय रूप देख ले जो भी आंदोलन व मूवमेंट हुआ है वो अंत में दूरगामी सोच विहीनता के कारण राष्ट्र निर्माण के लिए राजनीति कि पटरियों पर दौड़ने लगता है परिणाम गुड़ गोबर हो जाता है |
नई विकसित लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इस राजनीति के कानूनों को सबसे पहले दूर रखा जायेगा और इसके जुड़े लोगो व संगठनो तो लोकतान्त्रिक पार्टयों कि दिशा व लोकनीति कि पटरियों में लाया जायेगा | इसका एक प्रारूप हमने राष्ट्रपति-भवन कि सील व साईन के साथ पिछली पोस्ट में प्रस्तुत करा था | इस बार सिर्फ प्रारूप को पोस्ट कर रहे है ताकि आप अच्छे से समझ सके |
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